बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र
प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
उत्तर -
शिक्षा तथा सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध एक-दूसरे से प्रगाढ़ रूप से जुड़े हुए हैं। सामाजिक परिवर्तन करने वाले प्रमुख कारकों में शिक्षा भी एक है। सर्वप्रथम तो शिक्षा सामाजिक परिवर्तनों के लिए पृष्ठभूमि तैयार करती है तथा परिवर्तन हो जाने के बाद उनके अनुसार, स्वयं को अनुकूल बनाती है। इस प्रकार शिक्षा तथा सामाजिक परिवर्तनों के आपसी सम्बन्ध को निम्न प्रकार से समझा जाता है
(1) सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा आवश्यक - सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा का होना अति आवश्यक है। कोई भी सामाजिक परिवर्तन बिना शिक्षा के नहीं लाया जा सकता है। हमारे देश में पुराने समय से ही अनेक प्रकार की परम्पराएँ, रीति-रिवाज, रूढ़ियाँ चली आ रही हैं किन्तु ग्रामीण समाज में अशिक्षा का प्रसार इतना अधिक है कि इन पुराने रीति-रिवाजों, परम्पराओं, रूढ़ियों मान्यताओं को परिवर्तन करने का कोई भी प्रयास सार्थक नहीं हो पाता है। इन रूढ़ियों के कारण ही अनेक प्रकार के अन्धविश्वास, आडम्बर, कर्मकाण्ड हमारे देश की अधिकांश जनता में छाए हुए हैं। जब तक इनको परिवर्तित नहीं किया जायेगा तब तक समाज में परिवर्तन नहीं हो सकता है तथा ये परिवर्तन शिक्षा ही ला सकती है।
(2) शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन का अभिकर्ता - सामाजिक परिवर्तन लाने वाले कारकों में शिक्षा भी एक प्रमुख कारक है। शिक्षा के माध्यम से अनुभवों को पुनः संरचित किया जाता है तथा इस प्रकार से ही लोगों के व्यवहार में, रुचियों में परिवर्तन आता है। इन परिवर्तनों से सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन आता है जो सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। इस प्रकार शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख कारक है।
(3) शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन की अनुगामी है - निष्पक्ष भाव से देखा जाए तो एक स्वस्थ तथा दोषमुक्त शिक्षा ही सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायक हो सकती है लेकिन यदि वर्तमान समय की शिक्षा का अवलोकन करें तो पायेंगे कि आज शिक्षा में अनेक प्रकार के दोष आ गये हैं। समाज को परिवर्तन देने वाली शिक्षा आज स्वयं परिवर्तित होकर रह गई है तथा शासन शिक्षा को अपने अनुसार चलाता है तथा परिवर्तित करता है। इस प्रकार शिक्षा सामाजिक परिवर्तनों की अनुगामी बन गयी है तथा वह समाज में परिवर्तन न करके, होने वाले परिवर्तन का अनुगमन करती है।
(4) सामाजिक परिवर्तन का शिक्षा व अन्य माध्यमों पर पड़ने वाला प्रभाव - वर्तमान समय में समाज में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं। यदि हम स्वयं भी आज से 15 वर्ष पूर्व के समाज को याद करें तो आज के समाज की मान्यताओं तथा विश्वासों में जमीन आसमान का अन्तर दिखाई देगा। शिक्षा के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए हैं। कम्प्यूटर, प्रबन्ध व अन्य तकनीकी शिक्षा व चिकित्सा के अनेक कॉलिज खुल गए हैं। अनेक नये विषय विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए उपलब्ध हैं। पुराने समय में समाज में परिवर्तन इतनी लम्बी अवधि में होते थे कि शिक्षा पर पड़ने वाला उनका प्रभाव नगण्य होता था परन्तु आज के द्रुतगामी समाज में परिवर्तन इतनी शीघ्रता से होते हैं कि शिक्षा इन परिवर्तनों से प्रभावित होती है।
(5) शिक्षा पर विज्ञान तथा तकनीक का प्रभाव - वर्तमान समय में शिक्षा का आधार विज्ञान तथा टेकनीक है। आज के समाज में परिवर्तन का प्रभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर पड़ा है तथा इसी कारण शिक्षा भी इसी परिवर्तन से प्रभावित हुई है। आज सम्पूर्ण समाज विज्ञान व तकनीक के ऊपर आश्रित है। समाज में कम्प्यूटर, ई-मेल, नेट सर्फिंग आदि से शिक्षा का स्तर तथा उसकी सभी विषयों की उपलब्धता तथा महानता बढ़ी है। आज अनेक तकनीक शिक्षण संस्थान जिस प्रकार से सभी शहरों, कस्बों में उपलब्ध हैं वह समाज की जागरूकता तथा तकनीक से परिचित होने के कारण ही सम्भव हुआ है। कुछ समय पहले तक आई० टी० आई०, पोलीटेक्नीक ही तकनीकी शिक्षा के अध्ययन केन्द्र थे तथा उच्च तकनीकी शिक्षा के लिए प्रवेश परीक्षा के द्वारा आई० आई० टी० व प्रादेशिक कॉलेज थे जिनमें प्रवेश लेने से बहुत-से विद्यार्थी वंचित रह जाते थे। परन्तु आज प्रत्येक शहर में अनेक इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, प्रशिक्षण संस्थान आदि खुल रहे हैं, उसमें इंजीनियरिंग व चिकित्सा के क्षेत्र में शीघ्र ही भारत विश्व के अग्रणी राष्ट्रों में सम्मिलित हो जायेगा। इस प्रकार का परिवर्तन समाज पर विज्ञान व तकनीक के प्रभाव द्योतक ही है। समाज पर विज्ञान व तकनीक का प्रभाव पड़ने पर उसके अंगों पर भी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
(6) सामाजिक परिवर्तन के प्रभाव के रूप में शिक्षा - जिस गति से समाज में परिवर्तन हो रहे हैं उसी गति से यदि शिक्षा में भी परिवर्तन होते हैं तो उचित है, अन्यथा समाज में सांस्कृतिक विलम्बना की स्थिति उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है। इस स्थिति को शिक्षा के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है। शिक्षा को एक गत्यात्मक नीति अपनाने की आवश्यकता होती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि समाज में होने वाले परिवर्तन शिक्षा को भी प्रभावित करते हैं तथा इन परिवर्तनों को ग्रहण करने में यदि शिक्षा असमर्थ हो जाती है तो सामाजिक परिवर्तन नहीं लाये जा सकते हैं। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तनों के प्रभाव से शिक्षा की संरचना में भी मूलभूत परिवर्तन होते हैं।
(7) समान स्कूल प्रणाली समाज में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव - स्कूलों के शिक्षा प्रणाली पर भी पड़ा है। समाज अब वर्ग-भेद व स्तरों को भुलाकर एक समान स्तर वाला समाज बनने की ओर अग्रसर है। इसलिए अब अनेक पब्लिक स्कूलों में भी अपनी स्तर व सोच में परिवर्तन कर दिया है तथा अब स्कूल भी किसी वर्ग विशेष के न होकर प्रत्येक प्रतिभाशाली बालक चाहें, वह किसी भी वर्ग से हों उसे प्रवेश देते हैं। इस प्रकार जैसे-जैसे समाज में वर्ग-भेद समाप्त होता जा रहा है तथा केवल आर्थिक स्थिति ही महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में उभर कर सामने आ रही है, समान स्कूल प्रणाली जोर पकड़ती जा रही है। (8) स्त्री शिक्षा का विकास प्राचीन समय में नारी को हेय दृष्टि से देखा जाता था। नारी की स्थिति अच्छी नहीं थी तथा उसका एक प्रमुख कारण नारी को शिक्षा से वंचित रखना था। जैसे-जैसे समाज में शिक्षा का महत्त्व बढ़ा वैसे ही नारी के लिए भी उचित शिक्षा की आवाज उठने लगी। स्त्री शिक्षा को महत्त्वपूर्ण मानकर सरकार ने इस सम्बन्ध में अनेक विद्यालयों की स्थापना की तथा स्त्री शिक्षा का विकास किया। इस प्रकार समाज में होने वाले परिवर्तनों से स्त्री शिक्षा का विकास हुआ है।
(9) पिछड़े वर्ग का विकास - समानता पर आधारित समाज की स्थापना के प्रयास होने से अनेक जातियाँ जो आर्थिक तथा सामाजिक रूप से सदियों से पिछड़ी हुई थीं उन्हें समानता पाने का अवसर मिला तथा आरक्षण के फलस्वरूप इनकी सामाजिक स्थिति में भी परिवर्तन हुआ। इन्हें शिक्षा के क्षेत्र में, नौकरियों में आरक्षण मिला जिससे उनकी सामाजिक स्थिति बदली। अनेक शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान होने से पिछड़े वर्ग के विद्यार्थी के लिए शिक्षा के अवसरों में वृद्धि हुई। इस प्रकार से समाज में शिक्षा का स्वरूप परिवर्तित हुआ तथा समाज में परिवर्तन की लहर आ गई।
|
- प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
- प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
- प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
- प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
- प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
- प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
- प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
- प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
- प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
- प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
- प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
- प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
- प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
- प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
- प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
- प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
- प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।